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प्रिय तुम्हें मेरा निमन्त्रण मिल चुका है / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
प्रिय तुम्हें मेरा निमन्त्रण मिल चुका है,
अब तुम्हारा पंथ है, आओ न आओ।
जो कहीं जाते न थे, वे आ चुके हैं,
जो कभी गाते न थे, वे गा चुके हैं,
स्वप्न-गंधा रागिनी मैंने जगादी-
अब तुम्हारा कंठ है, गाओ न गाओ।
प्रिय...
कर लिया है धूल का शृंगार मैंने,
दे दिया है शून्य को विस्तर मैंने,
इन्द्र-धनुषी मेघ नत मस्तक खड़े हैं-
अब तुम्हारा व्योम है, छाओ न छाओ।
प्रिय...
तुम न आओ मैं बुलाता ही रहूँगा,
वंदना के गीत गाता ही रहूँगा,
हो चुकी पूरी प्रतीक्षा की परीक्षा-
अब तुम्हारा ध्यान है, लाओ न लाओ।
प्रिय...