प्रिय तेरी चितवन ही में टोना।
तन मन धन बिसर्यो जब ही तें, देख्यो स्याम सलोना॥१॥
ढिंग रहबे कु होत विकल मन, भावत नाहि न मोना॥
लोग चवाव करत घर घर प्रति, घर रहिये जिय मोना॥२॥
छूट गई लोक लाज सुत पति की, और कहा अब होना॥
रसिक प्रीतम की वाणिक निरखत, भूल गई गृह गोना॥३॥