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प्रिय थोड़ा तो सो लेने दो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
बरसों से जो जगी हुई उन आँखों को धो लेने दो।
प्रिय थोड़ा तो सो लेने दो॥
गिनती की सांसे पायी थीं
उस ऊपर वाले के दर से,
भर लाई सतरंगी सपने
नैनो के आंचल भर-भर के।
जगती आँखों के सपनों को थोड़ा सच हो लेने दो।
प्रिय थोड़ा तो सो लेने दे॥
मैं संग तुम्हारे लगी-लगी
कितनी ही रातें रही जगी,
थकती साँसें बोझिल पलकें
पर रोम-रोम में प्रीति पगी।
साँसों की धरती पर खुशबू के बीज ज़रा बो लेने दो।
प्रिय थोड़ा तो सो लेने दो॥
मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए सदा
आँसू पी-पी कर मुस्काई,
आज अचानक बाद युगों के
दृग में बदली घिर आयी।
दामन से अपने लिपट-लिपट मुझको जी भर रो लेने दो।
प्रिय थोड़ा तो सो लेने दो॥