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प्रिय पिता! / रश्मि विभा त्रिपाठी

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प्रिय पिता!
आपने छोड़ा है
मेरा हाथ मगर
आपका हाथ अब भी
मेरे सर पे सदा रहता है
ज़िंदगी की
घोर अँधेरी राहों में
एक जुगनू
बनकर चमकता है
तपती धूप में
अकसर मेरे वास्ते
ठंडी सी छाँव करता है
मुझे जलने नहीं देता
इन बादलों से बूँदों संग
रिमझिम बरसता है
मैं अकेली हूँ
मुझे अहसास नहीं होता
कोई तनहा सा डर
मेरी आँखों से
कभी जार-जार नहीं रोता
मुझमें बेखौफ़ जीने का
इक जज्बा जो पलता है
प्रिय पिता!
ये आपका आशीर्वाद ही है
जो हर वक़्त मेरे साथ चलता है!