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प्रिय रितु (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
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प्रिय रितु (कविता का अंश)
जुगुनुओं से घिरी मेघों से भरी
देखती समरूप मेंढक मोर को
आ गयी बरसात आंखों के लिए
ला गगन से भूमि पर शोभा हरी
बोलता तीतर, सुरंग ग्रीवा उठा
और झिल्ली गीत की सम्पदा लुटा।
नाचते हैं मोर- मेंढक पास ही,
हैं दिखाते चाल अपनी इकहरी।
(प्रिय रितु कविता से )