प्रिय रितु (कविता का अंश)
जुगुनुओं से घिरी मेघों से भरी
देखती समरूप मेंढक मोर को
आ गयी बरसात आंखों के लिए
ला गगन से भूमि पर शोभा हरी
बोलता तीतर, सुरंग ग्रीवा उठा
और झिल्ली गीत की सम्पदा लुटा।
नाचते हैं मोर- मेंढक पास ही,
हैं दिखाते चाल अपनी इकहरी।
(प्रिय रितु कविता से )