प्रिय सुत जाइत छी परदेश / रमापति चौधरी
(पुत्रलोकनि कें प्रथमहि प्रथम घर छोड़ि नौकरी जयबा काल कर्म क्षेत्र मे प्रवेशक अवसर पर सुदूर देश कलकत्ता, आसाम तथा माउन्ट आबू (राजस्थान) जाइत काल देल मंगलसूचक उपदेश।)
प्रिय सुत जाइत छी परदेश।
भेलहुं समर्थ, कहू की अहां सं, सुनू किछु उपदेश॥
छलहुं अखनि तक घर सं प्रेरित, चलइत बाट अनेक
अनुचित-उचित मोद कें मानल, बालक जानि कतेक॥
आब सहायक केवल होयत निज गुण मध्य विदेश
सेवा, कौशल, ज्ञान-प्रशिक्षण, कमर्ठता सविवेक॥
प्रथमहि प्रथम भेल अछि अवसर जीवन मध्य विशेष
प्रथम पदार्पण भव जीवन पथ मे, धरु सहित विवेक॥
काम-क्रोध-लोभ इत्यादि खींचत निज-निज ओर
दय आकर्षण, विविध प्रलोभन, बर बस पथ देति मोड़ि॥
उत्कट विकट कटक संकट युत भेटत पथ बिच देब
लय साहस, धीरज धरि हिय मे, निश्चयवश कय लेब॥
सेवा-धर्म ध्यान में राखब, आओत सब दिन काज
ग्राम-समाज, कुलक ओ प्रान्तक, देशक राखब लाज॥
सेवा-संयम आज्ञापालन, कष्ट सहिष्णु गुणादि
सुन्दर शील आदि अन्तहि मे, देत अनेक सुखादि॥
सदा स्वस्थ सुपुष्पित प्रमुदित उज्जवल कीर्ति समेत
दुर्वादल लय छी सब, कहैत चिरजीबू यश लैत॥
प्रिय सुत जाइत छी परदेश।
भेलहुं समर्थ, कहू की अहां सं, सुनू किछु उपदेश॥