प्रीतक बंधन / आभा झा
अल्पावधि केर प्रीतक बंथन
आनंदित कयलक अंतर्मन।
दुई बरखक नेह हुनक भेटल
पुनि स' ख सिंगार सेनुर मेटल।
तजि हाथ हमर चलि भेल कंत
हरि लेल हमर सुखमय वसंत।
हे विधना! केहन कठोर भेलहुँ
आँजुर में भरि-भरि नोर देलहुँ।
कोइली सन कुहकी दिवस रैन
झहड़ैत रहय अनवरत नैन।
दऽ गेला कोखि में अंश अपन
आहट पाबी हम जखन तखन।
मासेक भीतर छटलै अन्हार
कोरा में लए केलियै दुलार।
मुखकमल निहारल जतेक बेरि
हुनके छवि भेटल हेरि हेरि।
संताप हरय भगवती एली
वात्सल्य रसक अनुभूति देली।
लालन पालन में कटय काल
किलकारी सुनि भेलियै नेहाल।
ई जीवन केर आधार हमर
प्रियमक देल उपहार प्रवर।
ई चान-सुरूज, मूंगा-मोती
ई हमर आँखि कें छथि ज्योति।
पोछै छी नोर एक-दोसरक
संघर्ष करै छी पग-पग पर।
नहि कखनों बात हुनक बिसरी
दिन राति सांझ भिनसर सुमिरी।
निज कृष्णक हम बनलहुँ राधा
निश्छल प्रेमक नहि क्यो बाधा।
हम गीता सारक भान करी
आत्मा सँआत्ममिलान करी।
संसार बनल एक रंग मंच
सबहक अभिनय के होइ अंत।
अंतिम परदा खसतै जखनें
नेपत्थ्य द्वार खुजतै तखनें।
होयत हुनका संग पुनर्मिलन
दृग तृप्त करत ओ मधुमय क्षण।
आभा मंडलक इजोर हेतै
मन उपवन में नव भोर हेतै।