प्रीतम मेरे कब आओगे / भावना तिवारी
टीस उठे हिय भीतर लोचन, अथक बहाएँ आँसू!
प्रीतम मेरे कब आओगे, सोच-सोच रह जाऊँ!
चढ़ी पालकी पलकों वाली,
रैन दुल्हन बन आई!
नयन हठीले मण्डप त्यागें,
नींद रही अनब्याही!
जीवन से सपनों का नाता, जोड़-जोड़ रह जाऊँ!
प्रीतम मेरे कब आओगे, सोच-सोच रह जाऊँ!
अन्तर्मन की व्यथा अनोखी,
अधर नहीं कह पाए!
प्राणों से प्राणों की दूरी,
हृदय नहीं सह पाए!
आने वाले हर पंथी को, टोक-टोक रह जाऊँ!
प्रीतम मेरे कब आओगे, सोच-सोच रह जाऊँ!
पीर भरे दो हाथ दर्द की,
साँकल खटकाते हैं!
मन की चौखट छूकर जाते
तन को तरसाते हैं!
एक हँसी को तरस गया मन, घोंट-घोंट रह जाऊँ!
प्रीतम मेरे कब आओगे, सोच-सोच रह जाऊँ!
एक दिवस सौ सदी सरीखा,
मन में भ्रम भरता है!
साँसों का आगमन व्यर्थ ही
जीवन कम-कम करता है!
हुआ क्यूँ उनसे झूठा परिचय, कोस-कोस रह जाऊँ!
प्रीतम मेरे कब आओगे, सोच-सोच रह जाऊँ!