भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रीति-भेंट / श्रीकांत वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इतने दिनों के बाद अकस्मात मिले तो आँसुओं ने उसके उसे, मेरे मुझे
भरमा दिया,
आँसू जब थमे तो मैं कुछ और था, वह कुछ और-
वह मेरी आँखों में, मैं उसकी आँखों में
ढूँढ़ रहा था शंका, अविश्वास और याचना से
ठौर!