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प्रीत, छांट अर गड़ा / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
थूं नीं
म्हैं उतरूं
आभै सूं।
घालूं धरती रै
गळबांथ।
छिड़कूं
प्रीत री छांटां...!
फगत
इणीं बात सारू
भिड़ग्या बादळ
हुई झींटाखोसी।
फाट्यो नेह
बणग्यो मेह
टूट्या दांत
पड़-पड़ आंगण
बणग्या गड़ा.!
धोळै आंगणैं
न्हांवता
नागा ततूड़ टाबर.!
चुग-चुग गड़ा
कदै लै सुवादिया
कदै चिड़ावता
बादळ नै
बणा लेवै दांत...!