भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रीत-३ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन दौड़ा
प्रीत के लिए
परन्तु
प्रीत दूर
दूर जाना कठिन ।

प्रीत करनी आसान
पालनी कठिन
परन्तु पता नहीं
कब
पल गई प्रीत !
पता चला
वियोग में
आंसूओं के बल ।

आंसूओं का
हुआ अंत
प्रीत का नहीं ।

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"