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प्रीत का बाना / शान्ति प्रकाश 'जिज्ञासु'
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प्रीत का बाना रग-रग-रग..
रगर् याट क्यांकु करणी छै
अपड़ा पराया परदेसू छन
धारु बाठू देखणी छै
प्रीत का बाना रग-रग-रग...
सैरी जवानी खैरी मा काटी
बाळों कु कमी हूंण नि दे
पढै़ लिखै की पौंछ पौंछेनी
आखरी दां त्वै वु बिसरी गैं
प्रीत का बाना रग-रग-रग...
जौं का बाना ढुंग्गा बि पुजनीं
ज्यू मारी की जवनि बितै
वूं तैं तेरू बोलण बच्याण
हैंसण से भी नफरत ह्वै
प्रीत का बाना रग-रग-रग...
कै कू छै तु कूड़ी जग्वळ्णी
कै सारा दिन कटणी छै
त्वै तैंई जु बिसरि सि गेनी
दिन-राती वूं रटणी छै
प्रीत का बाना रग-रग-रग...।