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प्रीत भरी हो / अभिज्ञात
Kavita Kosh से
स्नेह सुधा चख हमने जाना
ममता का तुम खुला खजाना
बुझ जाएगी जग की तृष्णा
प्रियतम इतनी प्रीत भरी हो!
इतना दिया मुझे तुमने की
मेरी झोली अदनी ठहरी
तुमने प्यास बुझा दी इतनी
भीग गई मन की दोपहरी
सम्बल रीत गया था मेरा
ऐसे में आ तुमने टेरा
अब अभियान सफल मेरे सब
सचमुच तुम तो जीत भरी हो!
अब मेरी साँसों की वीणा
के सारे सुर सध जाएँगे
मुक्त कर दिया इतना तुमने
हम अकुला कर बँध जाएँगे
जीवन की तुमसे परिभाषा
तुम मेरी सारी अभिलाषा
शुष्क समर्पण मेरा लेकिन
तुम तो मधुमय गीत भरी हो!