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प्रीत भरे अनुबंध / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
तोड़ो मत
अब
जुड़ जाने दो
प्रीत भरे अनुबंध
अनगाये गीतों को
गा लें
फरमाइश अब है
हर पल की
चाही अनचाही
सब सुन लें
बहके-बहके
मन चंचल की
बह जाने दो
नेह नदी को
भूल सभी प्रतिबंध
नम आँखों में
जो रमते है
भूले बिसरे से
कुछ अपने
वन्दनवारो से
सजते हैं
जीवन देहरी पर
जो सपने
कसने दो अब
अंतर्मन पर
उनके भी भुजबंध