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प्रीत री दरकार / राजूराम बिजारणियां

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बगत पंपोळतै
हाथां सूं
छूट‘र
आंगणै बिचाळै
खिंडयोड़ै बुगचै नै
अंवेरती दादी माथै
कळछ‘र पड़ी
बीनणी-

‘‘कांई धरयो है
लीरम-लीर बुगचै में.?

क्यूं फिरोळती रैवो
आखै दिन चीथड़ै नै.?’’

कांई बतावै दादी
ओ बुगचो
कोनी फगत
फाटयो-पुराणो पूर.!

इण में-
गळगी जूण
ढळगी हाण
बळगी बाट
अर रळगी ओळूं री
आछी-माड़ी ओळ्यां.!!

जका नै
सबदां री नीं,
रैवती दरकार
फगत प्रीत री।