भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रीत रो पानो : 1 / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थारो प्रीत रो पानो
म्हैं सावळ संभाळ राख्यो है
ओरै री संदूक में।

नितूगै जोवूं
प्रीत री आ अणमोल सैनाणी
चाव सूं बांचूं
हेत रा हरफ
चाणचाण हरयो हुय जावै
सूखो ठूंठ बगत
हियै तांई पूगण ढूकै
मधरी-मधरी सौरम।

प्रीत रो पानड़ो
समंदर बण जावै
ओळूं रै आंगणै।