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प्रीत रो पानो : 4 / मदन गोपाल लढ़ा
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बोदो कागद पोचग्यो
हरफां रो रंग
मोळो पड़ग्यो
प्रीत री पैली पाती माथै
जमगी
बगत री खंख।
पण हाल जीवै है
थारी उड़ीक!