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प्रीत : अेक / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़
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कोई तो कारण हा
जकां में बंध
आपां आया
अेक दूजै रै नेड़ा।
बा पकायत
प्रीत ई ही
इण में
कित्तो-क सांच है
कित्तो-क कूड़
कुण जाणै
आपां नै टाळ।
आव
आपां सोधां
बै कारण
फेर देखां
कित्ती-क चालै प्रीत
कारण परगट्यां
जे चालै प्रीत
तो जीत है
प्रीत री।