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प्रीत : दो / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़
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प्रीत रा फळ
भोत मीठा
आव चाखां।
उंतावळ नीं
पैली लागण दे
पांगरण दे
फेर पाकण दे
पाक्यां
पकायत ई
होसी मीठा
अभी ना धार
ठाह तो
चाख्यां ई लागसी।
देखी
काच्ची
ना तोड़ लेई
मन रै मतै
प्रीत !