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प्रेतानुभूति / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
अभी उस रात मैं मर गया
घूमते घामते फिर अपने नगर गया
मेरा सबसे प्रिए मित्र सुख की नींद सोया था,
मुझे अच्छा लगा
मुझे शांति मिली
धूप चढ़े मेरी खिड़की में चावल चुगने आता कबूतर
बहुत बेचैन दिखा
चोंच घायल कर ली थी तस्वीर से टकरा कर,
मुझे बहुत खराब लगा
मुझे कभी शांति नहीं मिलेगी