प्रेत पीड़ित प्राण जीबधु आब ककरा हेतु ? / राजकमल चौधरी
1
निम्न टूटल। ठाढ़ सोझाँमे छलाहे प्रेत कुल सम्राट
माथ पर छनि महीसक सिंघ,
आँखि ओड़हुल-फूल;
दाँतसँ चिबबैत काँचे हाड़, बजलाह-
फूल बाबू थिक अहींक नाम ? आइसँ हम तँ अहींक
देहमे राखब अपन आसन,
हम अहींमे रहब ?
2
निम्न टूटल। एहन लागल, हमर एहि रोग जर्जर देहमे
आठ हाथी, तीस घोड़ा, पाँच भूखल बाघ
सरिपहुँ समा गेल अछि,
एहल लागल, एकटा कारी हरिन तैयो नुकाएल अछि।
हमर प्राणक चन्द्रामे ?
हम कारी हरिनकें, आइ हमरे रोग जर्जर देहमे
पाँच भूखल बाघ, घोड़ा तीस, हाथी आठ
मिलि क’ करत मृगया, मारि आनत
प्रेतराजक सफल होएत भोज ?
3
हमर प्राणक चन्द्रमामे एकटा कारी हरिन अछि। आ,
हमर हाड़क, हमर माँसक महलमे
प्रेत कुल सम्राट
हँसि-हँसि, हुलसि, क’ रहल छथि निशा संभोग।
हम अपने कत’ छी ?
कत’ छी, हरिनमे, अथवा महल केर द्वारि पर छी
परम एकसर, हाथ बन्हने, आँखि मुनने, ठाढ़ ?
4
प्रेत पीड़ित प्राण जीबथु आब ककरा हेतु ?
जीबथु आब ककरा हेतु ?
हरिन काटल गेल। भोज रसगर भेल। निशा-भोगक बाद
सुतला शान्तिमय, भयहीन भ’ सम्राट।
हमर टूटल निम्न।
गरजल बाघ, घोड़ा हिनहिनाएल हाथी सभक
चिग्घारसँ सभ दिशा काँपल...
प्रारम्भ भ’ गेल युद्व !
हमरे देहमे, तीन प्रकारक पशु
(हरिनक मृत्यु पहिनहि भेल, पहिनहि सूति रहलाह प्रेत ?)
एक बाटी बचल हरिनक माँस-तकरे लेल
कएलन्हि युद्ध !
बेसी खराप नहि लागल हमरा कहियो युद्ध-बियाधि,
मुदा, दस योजनसँ देखले सन्ताँ ?
आब एखन तँ हम बताह छी...अपने हरिनक
माँस खाइत छी, नुका चोरा क’।
हम बताह छी...
हमर देहमे युद्ध होइत अछि, हमर देहमे प्रेत सूतल अछि,
आ, हम गबैत छी प्रान पराती,
हम लिखैत छी गंगाजलसँ नीपल धरती पर प्रतिदिन
अस्सी हजार बरे नाम,.....हुनके नाम !
5
जत’ हरिन छल, हमर प्रानक चन्द्रमामे,
उगल एकटा गाछ, नीमक गाछ।
क्रमशः गाछमे झूला लगाओल गेल.....
क्रमशः छोट सन कारी चिड़ै
(ने कोकिल, आ ने कौआ)
आबि बैसल
कोनो पातर डारि पर, चुपचाप।
6
युद्ध भ’ गेल शेष। बाघ, घोड़ा आ हाथी गोट-गोट
सभ मुइल;
सभकें उदरस्थ कएलनि एकसरे, प्रेतकुल सम्राट।
नीमक डारि बैसल चिड़ै हमरा प्रश्न कएलक-
ककर लैत छी नाम ?
नाम सुनिते लोप भ’ गेलाह, हमरा देहसँ
अपन सिंहासन सहित सम्राट...
तखन बाजल चिड़ै, हमहीं चन्द्रमामे हरिन,
लोकक प्राणमे छी सिनेह हमहीं
हम चिड़ै बनि गान गाएब, अहाँ लिखब नाम
हुनके नाम !