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प्रेमक परिभाषा / शारदा झा

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प्रेमक परिभाषा भ' सकैत अछि
प्रेमहि टा
ओहिना
जेना ईश्वरक सत्यापन
मात्र ईश्वरहि टा क' सकैत छथि
कोनो प्रत्यक्ष आकि प्रमाणक कोनो खगता नहि
मोहक जंजाल मे फसल हो
आ कि बैरागी भ' गेल हुअए
प्रेमक कोनो रूप
अनन्य प्रेम सँ कम नहि
रुक्मिनिक दर्प हो
कि सत्यभामाक नेह
मीराक समर्पण
आ कि राधाक दैनन्दिनी
कोनो विशेष अंतर नहि
सबहक ध्येय अपन प्रीतिक प्रति समर्पण!
प्रेम आ जीवन कखन भ' सकल फरिच्छ?
कहियो नहिं...
थम्हने आँखिक नोर मे संसार आ
ओकरे परिधिक अंदर
अपन अपन स्थान तकैत अछि
राति होयबा सँ पहिने
जीवनक जाहि यंत्रनाक क्षण मे
जीबाक अभिलाषा केँ
कनि आर मजगूत करैत अछि प्रेम
तखने बिजलौका जकाँ
भ' जाइत छै देखार मेघक पाछाँ सँ
जीवनक सार
आ पिपरक गाछ तर बैसल तथागत
भ' जाइत छथिन ध्यानमग्न
आ ओहि गाछक खोहि मे
दू गोट परबा घेंट जोड़ने
भोरक प्रतीक्षा मे अछि