प्रेमरंग-पगे जगमगे जगे जामिनी के,
जोवन की जोति जगी जोर उमगत हैं.
मदन के माते मतवारे ऐसे घूमत हैं,
झूमत है झुकि झुकि झेंपि उघरत हैं.
आलम सो नवल निकाई इन नैनन की,
पाँखुरी पदुम पै भँवर थिरकत हैं.
चाहत हैं उडिबे को,देखत मयंक मुख,
जानत है रैनि तातें ताहि में रहत हैं.