प्रेमाभास / स्वदेश भारती
मेरी उदासी का रहस्य यह नहीं
कि वसन्त ने मुझे
पतझर के हाथों सौंप दिया
मेरी उदासी का रहस्य यह भी नहीं कि प्रेमीले सपनों ने मेरे विश्वासों को
खण्डित-प्रत्यँचा दी
टूटकर जुड़ने
और जुड़कर टूटने के अनवरत क्रम में
हार गया दाँव पर लगाए गए सभी सपने
मेरी उदासी का रहस्य यह भी नहीं
कि हताशा के अन्धेरे में चलते हुए
थक गए हैं पाँव अथवा छूट गए
वे सभी सन्दर्भ जो बहुत बहुत अपने थे ।
अपनी उदासी के बारे में
जब भी सोचता हूँ तो यही पाता हूँ
आखिर मेरी उदासी का रहस्य क्या है ?
गोपालपुर
24 दिसम्बर 1971
”’लीजिए, अब पढ़िए, इस कविता का अँग्रेज़ी अनुवाद”’
Swadesh Bharati
Love Expectation
My melancholy is not due to the fact
that the spring has
handed me over to the autumn.
Nor it's due to the failure of
my sweet dreams that gave my belief
a broken bow-string
And in the ever-lasting order of
union or divison of all sweet dreams
are staked and lost in the wager.
My despondency is not due to
the tired feet treading the dark path of frustration
due to the loss of my own dearest contexts
Once they all belonged very much to me
whenever I muse over the cause of my melancholy
I am always caught up by these reflections
I know not the reasons of my despondency
Wha's the secret of all this after all?
Gopalpur,
24th December, 1971