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प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे क्या / भव्य भसीन
Kavita Kosh से
दिन निकल आया आप कहाँ हैं,
कहो अब सेवा कैसे करूँ।
सदा प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे क्या?
प्रीति वर्षण के बाद उसकी मधुर धाराएँ
समाये उर अंतर में,
मैं उड़ रही थी संग तुम्हारे।
मुझे लिए फ़िर कहीं चलोगे क्या?
चिर पिपासा को बनाये रखना,
दासी से प्रेयसी फ़िर प्रेयसी से दासी करना।
वियोग-मिलन की गाथा से मुक्त कहो तुम करोगे क्या?
केवल पुष्प माल से सुंदरता तुम्हारी भी नहीं होगी,
सिद्ध है बिना प्रेयसी के प्रेम की गाथा नहीं होगी।
किसी अकिंचना के भुज माल से अलंकृत,
स्वयं को करोगे क्या?
या उसके प्रेमाश्रु से ही स्नान करोगे, कहो करोगे क्या?