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प्रेमिका के लिए / विजय गौड़
Kavita Kosh से
मैं भूल चुका हूँ
उस बीते हुए समय में
कही और सुनी गई बातें,
नहीं भुला पाया हूँ
एक जोड़ी भूरी-भूरी नम आँखें,
गुथें हुए बालों की
एक जोड़ी चोटी
इतने दिनों बाद भी
नहीं लिख पाया हूँ
कोई ख़त, कोई कविता
उम्मीदों से भरे बचपन के क़िस्से ही
लिखता रहा हूँ आज तक
जबकि, पिता का प्यार भरा
गुस्सैल चेहरा
समा गया है मेरे भीतर
फिर भी, तुम जहाँ हो
रहेगा वहीं
मेरी जिन्दगी का
सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा;
अमरूद के सख़्त तने-सा