भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेमी के बारे में / नंद चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
हवा से मैंने प्रेम के बारे में पूछा
वह उदास वृक्षों के पास चली गई
सूरज से पूछा
वह निश्चिन्त चट्टानों पर सोया रहा
चन्द्रमा से मैंने पूछा प्रेम के बारे में
वह इन्तज़ार करता रहा
लहरों और लौटती हुई पूर्णिमा का
पृथ्वी ही बची थी
प्रेम के बारे में बताने के लिए
जहाँ मृत्यु थी और ज़िन्दगी
सन्नाटा था और संगीत
लड़कियाँ थीं और लड़के
हज़ारों बार वे मिले थे और कभी नहीं
समुद्र था और तैरते हुए जहाज़
एकान्त था और सभाएँ
प्रेम के दिन थे अनन्त
और एक दिन था
यहाँ एक शहर था सुनसान
और प्रतीक्षा थी
यहाँ जो रह रहे थे कहीं चले गए थे
थके और बोझा ढोते
जो थक गए थे लौट आए थे
यहाँ राख थी और लाल कनेर
प्रेम था और हाहाकार