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प्रेमी युगल को देख लें पसरे जहाँ-तहाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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प्रेमी युगल को देख लें पसरे जहाँ-तहाँ
अब भी लगे हैं इश्क पर पहरे जहाँ-तहाँ

ये घूमते जो लोग हैं वे सब रक़ीब हैं
देखो कई हैं लट्ठ ले ठहरे जहाँ-तहाँ

ताने सुने या गालियाँ परवाह कुछ नहीं
मस्ती लुटाते कुछ मिले बहरे जहाँ-तहाँ

जिसको न मिलता प्यार का मौक़ा सदा वही
हरदम मिलेंगे आपको बिफरे जहाँ-तहाँ

दिल ही पड़ा है टूट कर ‘बाबा’ बिलख रहा
टुकड़े मिले जो सामने बिखरे जहाँ-तहाँ