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प्रेमी / विनोद विट्ठल

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1.

प्रेमिका से
पहली मुलाक़ात का दिन-समय-स्थान पूछ
प्रेमियों को उलझन में न डालो

उनके पास केवल यादें हैं

वे सूखी नदी के मल्लाह हैं
याद दिलाने से रो पड़ेंगे
लोग कहेंगे नदी का पानी चढ़ रहा है

2.

प्यार
हमेशा अच्छे मौसमों में होता है
चाहे कहीं भी हो, किसी भी मौसम में

आप जानते हैं
मरने के बाद प्रेमी मौसमों में बदल जाते हैं

3.

मर चुके होंगे सारे सफ़ेद कबूतर
युद्ध भी ख़त्म हो चुका होगा आख़िरी बम से आख़िरी आदमी को मार

बचे रहेंगे ये
सूखी घास के गुच्छे और दो पत्थरों के साथ

4.

उनकी दुनिया नहीं बदलती

उन्होंने
प्रेम-पत्र पर धरती को पेपरवेट की तरह रख रखा है

5.

उन दिनों लेटर बॉक्स पेड़ों में होते थे
हारिल, कबूतर डाक बाँटते
दूर की होती तो नदी ले जाती दरिया के डाकघर तक

उन दिनों चान्द हमेशा और पूरा चमकता
हवा हमेशा ख़ुशबूदार होती
मौसम का रिकॉर्ड बसन्त पर अटका रहता
फूल अपने आप गुलदस्ते या वेणी बन जाते

उन दिनों के ये बातें
हर दिनों के प्रेमी सुनाते हैं
जसराज को नए राग
और यती कासरगोड को नए रँग मिलते हैं

6.

हम
कच्छपों की पीठ पर बैठ नदी पर करते

पहाड़ पार
ब्रह्मा से आँख बचा
अपने पँख यान-से करते कपोत करवा देते

धरती प्रकृति से आँख बचा दूरी कम करने
थोड़ी-सी सिकुड़ जाती

प्रेमियों की ये बातें सच थोड़ी ही हैं, बुदबुदाते हैं
फिर भी वैज्ञानिक उदास हो जाते हैं

7.

सुना है
मशीनें आ गई हैं
देख लेती हैं धरती के भीतर, ठेठ भीतर
धरती की रसोई में रखी घासलेट की बोतल
कनस्तर का आटा तक

लगाएँ वह मशीन प्रेमियों के
कि सरस्वती उनके किस हिस्से में बह रही है

8.

लोग चकित थे
हर तीसरे दिन जँगल में आते बसन्त को देख
पेड़ों का अचानक गहराता हरापन
अमराई में कैरियों का असमय पके आमों में बदलना
घास के दीवान पर नई-नई चादरें होना

बहुत बाद में पता चला
प्रेम-पत्रों को पढ़ने के लिए डाकिया
करीने-से लिफ़ाफ़े खोल देता था

9.

समय को मुर्गा बना देता
चान्दनी तेज़ या मद्धम कर देता
शाम की लम्बाई घटा-बढ़ा देता
मौसम का टाइम-टेबल बदल देता

वह क्या था जो अब नहीं है

सांसारिक के पूछने पर नारद बोले :
उन दिनों तुम प्रेमी थे