भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम–राग-४ / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
सीपियों में
मोती का बनना
छीमियों में दानों का उतरना
जाना
तुमसे मिलने के बाद
कहाँ जानती थी क्या होता है प्रेम
तुमसे मिलने से पहले
भरोसा भी कहाँ था
किसी पर
कहाँ पता था यह भी कि प्रेम
एक बार ही नहीं होता
जीवन में..कल्पना में ..बसते हैं
असंख्य प्रेम
कहाँ जाना था तुमसे प्रेम से
पहले
अब जबकि हो दूर
फड़कते होंगे
तुम्हारे होंठ
जब तितली होती हूँ यहाँ
पढ़ते होगे तुम वहां मेरी सांसों की लिखी चिट्ठी
किसी चुराए क्षण में
सच कहना
क्या नहीं.