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प्रेम,प्यार,अनुराग ..... / सर्वत एम जमाल

प्रेम, प्यार, अनुराग, मुहब्बत
यह भावनाएं मुझमें भी हैं
आख़िर हूँ तो मैं भी
इंसान ही।
किसी की नशीली आँखें
सुलगते होंठ
खुले-अधखुले, सुसज्जित केश
मुझे भी प्रभावित करते हैं
शायद तुम्हे विश्वास नहीं
क्योंकि मेरी रचनाओं में
तुम्हें इसकी परछाई तक
दिखाई नहीं पड़ती।
यह भी मेरे
प्रेम, अनुराग
प्यार, मुहब्बत का
प्रमाण है
जो मुझे है
प्रकृति से,
धरती से,
विधाता की हर रचना से।

मैं नफरत करता हूँ
शोषण से,
अत्याचार से,
दिखावे से,
झूट को सच
और सच को
झूट कहने से।
यही कारण है
मेरी रचनाएं
इनके विरोध में खड़ी हैं।

जब कभी
इस अघोषित युद्ध में
जीत,
मेरी कविताओं की
मेरे विचारों की होगी
और हार जायेंगे
शोषण, अत्याचार, कदाचार
एवं
धरती पर नफरत उगाने वाले
और उनके सहायक तत्व
तब इस धरती पर
सिर्फ़ प्रेम होगा

कोई बच्चा,
नहीं शिकार होगा
कुपोषण और
बालश्रम के
दानव का।
कोई महिला
देह्शोषित
नहीं होगी।
कोई पुरूष
अपने ही
परिजनों की नजरों में
शर्मिन्दा नहीं होगा

तब
मेरी रचनाएं
फ़िर
समय का दर्पण बनेंगी
और एक
नया फलक बनाएंगी,
इस धरती के लिए।

मुझे विश्वास है
तब मैं अकेला नहीं रहूँगा
अजूबा नहीं रहूँगा
और ऐसा नहीं रहूँगा ।
परन्तु क्या
मेरे जीते जी
ऐसा होगा ?