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प्रेम-क / अनिल पुष्कर
Kavita Kosh से
एक औरत का प्यार कि जैसे गूलर के फूल
और तुम्हारा ज्यों गुलमोहर बिछे हों
यहाँ से शुरू हुई एक प्रेम कहानी
और रास्ते भर चलती हुई एक रोमांचक खाई से गुज़री
औरत ने कहा -- ये इम्तेहान का वक़्त है
और वो नीले ख़्वाबों के पंख पसारे उड़ चला
भोर में देखा सुर्ख नाजुक कली बाग़ में मुस्कुरा रही है
औरत उसे लहू की ख़ुराक देकर सींचती रही
ज्यों ही उसने आलमारी खोली
एक दरिया बह निकला
वो इस मर्तबा सारी ज़रूरियात खो देगा
उसने झट किवाड़ें बन्द कीं
औरत ने आहिस्ते से दराज पोछते हुए
और चन्द खिलौने भीतर रख दिए ।