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प्रेम-नृत्य का घेरा / तिमातेउष करपोविच / अनिल जनविजय

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कलात्मक प्रतिलिपि

प्रेम की ख़ातिर उसने अपने सर पर से रुमाल उतारा
और फिर अपने रुमाल से छुड़ाए अपने बाल
फिर वहाँ सब बिल्कुल उसके बालों जैसा ही था
फिर वहाँ सब जैसे बिल्कुल वैसा ही न था

फिर छूट गया वो सब उसकी गरदन पर लिपटा था जो
फिर उसने गरदन अपनी एक कोने में झुकाई
फिर वह किनारा उसकी गरदन पर लिपट आया
फिर हर किनारा ख़ाली था बिन कोन

फिर गरदन उसकी रह गई थी गरदन रहित
वो ख़ुश थी और अपने शरीर से बाहर निकली
उसने ख़ुद को अपने शरीर से किया अलग
और वो भूल गई कि उसका कोई शरीर भी है

इसके बाद किसी को कुछ भी याद नहीं रहा
वो अब भी उसकी थी, उससे पहले सी जुड़ी हुई थी
अब वो उसकी नहीं थी जैसे, पर वही थी
पर अब वो नहीं रही थी, जो उसकी थी

वैसे ही जैसे अब वो अपनी भी नहीं रही थी।
 —
हिन्दी में अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए, अब इस कविता को रूसी अनुवाद में पढ़िए
Тимотеуша Карпович
Круг танца любовного

сняла она платок с волос любви ради
потом сняла со своего платка волосы
потом то что волосы напоминало
потом то что уже ничего не напоминалo

то что скрыло потом все стороны шеи
потом шея склонилась в сторону
потом сторона склонилась к шее
потом стороны оказались сторон без

потом шеи оказались шей лишенными
веселилась она вoставая из тела
потом тело вырвалось из тела
потом что смогло забылось из тела

потом ничего не помнилось боле
была той же ему принадлежащей
как не ему принадлежавшей той же
как уже не той ему не принадлежащей

как не такая же не была самой собою

लीजिए, अब इसी कविता को मूल पोल भाषा में पढ़िए
         Tymoteusz Karpowicz
          Koło tańca miłosnego
 
                                             kopia artystyczna

i z miłości zdjęła chustkę z włosów
potem zdjęła włosy poza chustkę
potem co mogło przypominać włosy
potem co niczego już nie przypominało

zachodziła go ze wszystkich stron szyi
potem szyja zachodziła w strony
potem strony zachodziły w szyję
potem stronom było już bez stron

potem szyjom było już bez szyi
była wesoła zrywała się z ciała
potem ciało zrywała z ciała
potem co mogło nie pamiętać ciała

potem co niczego już nie pamiętało
była ciągle taka sama jego
jak nie jego była taka sama
jak nie taka sama była już nie jego

jak nie sama była już nie taka