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प्रेम-पत्र / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
Kavita Kosh से
केनाँक कटतै पूसऽ रऽ जाड़ा बिना घूरी केॅ?
केनाँक कटतै बरफ रंङ जाड़ा एतना दूरी केॅ?
नैं छै खटिया,
नैं छै ओढ़ना।
थर-थर काँपै,
बोढ़नी, बोढ़ना।
वै पर पछिया मारै सैयाँ हूरी-हूरी केॅ।
केनाँक कटतै पूसऽ रऽ जाड़ा बिना घूरी केॅ?
दीनी के कुछ लारऽ छै,
सूतै, बैठै के पारऽ छै।
भूटकीं छाती चाटै छै,
झूठे भूख मिटाबै छै।
ऐ जिनगी सें मरना अच्छा माथऽ चूरी केॅ
केनाँक कटतै पूसऽ रऽ जाड़ा बिना घूरी केॅ?
थोड़ऽ लिखवाय छीहौं
अधिक समझहियौ।
जागली रहभौं,
देरी नैं करिहियौ।
नैं तेॅ हमरा मरली देखभौ बिना छूरी केॅ
केनाँक कटतै पूसऽ रऽ जाड़ा बिना घूरी केॅ?
-13.12.14