प्रेम-पिआसे नैन / भाग 5 / चेतन दुबे 'अनिल'
मन से मन रूठा जभी, बिखर. गए सम्बन्ध।
सपना सूली चढ़ गया, टूट गया अनुबंध।।
समय-सेज पर शाम से, सपना हुआ उदास।
भावों के भूगोल का, भूल गया इतिहास।।
मेरे मन की वेदने! क्यों इतनी बेचैन।
सुख- दुख इस संसार में, हैं दाता की दैन।।
रे अम्बर के चाँद तू, मुझको यों न निहार।
मेरे मन पर है बड़ा,पीड़ाओं का भार।।
जाने मुझसे क्या हुई, इस दुनिया में भूल।
फूल दिए जिस हाथ में, मिले उसी से शूल।।
रूपसि ! अब तो बोल दो , प्रीत भरे दो बोल।
खण्ड -खण्ड होने लगा , मानस का भूगोल।।
जब तुमको डसने लगें, विपदाओं के ब्याल।
तब आजाना प्राणधन! छोड़ जगत-जंजाल।।
दुनिया ठुकरा दे तुम्हें,. तब तुम आना पास।
मैं अपनाऊँगा तुम्हें , रखो हृदय में आस।।
दो आँखों की झील में, डूब गया संसार।
जो उबरा वो तर गया, गया प्रणय के पार।।
जब जीवन में तुम मिली, बँधी हृदय को आस।
फिर पल- पल बढ़ती गई, उर- अधरों की प्यास।।