भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम-भरी कातरता कान्ह की प्रगट होत / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

प्रेम-भरी कातरता कान्ह की प्रगट होत,
ऊधव अवाइ रहे ज्ञान-ध्यान सरके ।
कहै रतनाकर धरा कौं धीर धूरि भयौ,
भूरि भीति भारनि फनिंद-फन करके ॥
सुर सुर-राज सुद्ध-स्वारथ-सुभाव सने,
संसय समाये धाए धाम विधि हर के ।
आइ फिरि ओप ठास-ठाम ब्रज-गामनि के,
बिरहिनि बामनि के बाम अंग फरके ॥13॥