भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम-संगीत / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
1-मुक्तक
गहन हुआ अँधियार
प्रियतम मन के द्वार ।
धरो प्रेम का दीप
कर दो कुछ उपकार ।
2
नीरव मन का कोना
अँसुवन की है धार।
छेड़ प्रेम की वीणा
झंकृत कर दो तार ॥
3-दोहा
छोटी- छोटी बात पर,
मत करना तुम रार ।
मेरे जीवन का सभी
तुम पर ही अब भार।
4-दोहा
माटी-सी इस देह के
तुम हो प्राणाधार
तुम्हीं आत्मा हो प्रिये !
मैं तो बस संचार ॥
-0-