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प्रेम-2 / दुष्यन्त

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मैं भर लूँ उडान
ऊँचे-नीले अथाह आसमान में
और अक्षरों की वर्षा हो

जो तुमसे लिये हुए हैं
और तुमको ही है समर्पित

कभी तारों
और कभी मोतियों की तरह।

 
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा