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प्रेम-3 / अपर्णा भटनागर
Kavita Kosh से
कितना रहस्यमय है प्रेम
जतिंगा की उन हरी पहाड़ियों सा
जो खींचती हैं असंख्य चिड़ियों को
अपने कोहरे की सघन छाह में
चन्द्र विहीन रात पसर जाती है पंखों पर
और क़त्ल हो जाती हैं कई उड़ाने एक साथ
घाटी निस्पृह भीगती रहती है
पूरे अगस्त -सितम्बर तक
रहस्यमयी हवाएं बदल लेती हैं रुख उत्तर से दक्षिण को ...
एक ठगा स्पर्श बस!