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प्रेम-3 / अरुण देव
Kavita Kosh से
घने बादलों की तरह छा गया मैं
उसकी प्यासी धरती पर
उसकी देह जैसे एक सघन वृक्ष
अपनी पत्तियों से पसीजता हुआ पोर-पोर
उसके ताप से
धारदार बरसा मैं
मूसलाधार दिनों में
अगली सुबह खिली हुई धूप में
हमने सुखाए अपने-अपने क्लेश ।