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प्रेम-7 / सुशीला पुरी
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प्रेम
भूख भी है...आग भी
पकने, तपने और स्वाद के बीच
कहीं न कहीं
बटुली में
खदबदाती रहती है
एक चुटकी चुप
और ढेर सारी भाप...!