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प्रेम-9 / सुशीला पुरी
Kavita Kosh से
प्रेम
पीतल की साँकलों वाला
भारी-भरकम
लोहे का द्वार है
जहाँ
असंख्य पहरुए
प्रवेश वर्जित की तख़्तियाँ लिए
घूमते रहते हैं रात-दिन...
और आपको
दाख़िल होना होता है
अदीख हवा में घुली
सुगन्ध की तरह...!