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प्रेम अंकुरण / मोहन सगोरिया
Kavita Kosh से
फूल के भीतर
प्रेम है फल
फूल के भीतर
प्रेम है बीज
बीज के भीतर
प्रेम है वृक्ष
वृक्ष के भीतर
प्रेम है जीवन
जीवन के भीतर
प्रेम है संसार
संसार के भीतर
प्रेम नहीं
...तो निस्सार
बहुत गहरे धँसा है प्रेम।