प्रेम अनादि अनन्त अमर है / गिरधारी सिंह गहलोत
जग जलधि में प्रेम ही सर्वस
प्रेम अनादि अनन्त अमर है
प्रेम है भक्ति प्रेम है शक्ति
प्रेम है युक्ति प्रेम है सुक्ति
प्रेम है चाह प्रेम है राह
प्रेम है बन्ध प्रेम है मुक्ति
प्रेम है धुप प्रेम है छाँह
प्रेम है आह प्रेम है बांह
प्रेम वंदना प्रेम कल्पना
प्रेम मधुर गीतों का स्वर है
जग जलधि में प्रेम .........
प्रेम आन है प्रेम बान है
प्रेम शान है प्रेम मान है
प्रेम तीर है प्रेम पीर है
प्रेम गान है प्रेम तान है
प्रेम साज है प्रेम गीत है
प्रेम हार है प्रेम जीत है
प्रेम धर्म है प्रेम कर्म है
प्रेम मोक्ष की शांत डगर है
जग जलधि में प्रेम ...........
प्रेम इक प्यास प्रेम इक आस
प्रेम विश्वास प्रेम उल्लास
प्रेम आल्हाद प्रेम उन्मांद
प्रेम ब्रजरास प्रेम मधुमास
प्रेम गुमनाम प्रेम उद्दाम
प्रेम अभिराम प्रेम अविराम
प्रेम चिरंतन प्रेम निरंतर
प्रेम मधुर रस का निर्झर है
जग जलधि में प्रेम ही सर्वस
प्रेम अनादि अनन्त अमर है