प्रेम करनेवाली लड़की / रमण कुमार सिंह
प्रेम करनेवाली लड़की अक्सर
हो जाती है ख़ुद से ही गाफ़िल
और दुनिया को अपने ढंग से
बनाने-सँवारने की करती है कोशिश
प्रेम करनेवाली लड़की
हवा में ख़ुशबू की तरह
बिखर जाना चाहती है
उड़ना चाहती है स्वच्छंद
पंछियों की तरह
धूप-सी हँसी ओढ़े वह लड़की
भर देना चाहती है उजास चहुँ ओर
प्रेम करनेवाली लड़की
सोना नहीं, चाँदी नहीं
गाड़ी नहीं, बँगला नहीं
चाहती है
बस, किसी ऐसे का साथ
जो समझ सके उसकी हर बात
और अपने प्रेम की तपिश से उसे
बना दे कुंदन-सा सुच्चा व पवित्र
अब वह आईना भी देखती है
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|रचनाकार=रमण कुमार सिंह
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प्रेम करनेवाली लड़की अक्सर
हो जाती है ख़ुद से ही गाफिल
और दुनिया को अपने ढंग से
बनाने-सँवारने की करती है कोशिश
प्रेम करनेवाली लड़की
हवा में ख़ुशबू की तरह
बिखर जाना चाहती है
उड़ना चाहती है स्वच्छंद
पंछियों की तरह
धूप-सी हँसी ओढ़े वह लड़की
भर देना चाहती है उजास चहुँ ओर
प्रेम करनेवाली लड़की
सोना नहीं, चाँदी नहीं
गाड़ी नहीं, बँगला नहीं
चाहती है बस किसी ऐसे का साथ
जो समझ सके उसकी हर बात
और अपने प्रेम की तपिश से उसे
बना दे कुंदन-सा सुच्चा व पवित्र
अब वह आईना भी देखती है
तो किसी दूसरे की नज़र से
परखती है स्वयं को
और अपने स्व को दे देती है तिलांजलि
प्रेम करनेवाली लड़की के पाँव
किसी नाप की जूती में नहीं अँटते
समाज के चलन से अलग होती है उसकी चाल
माँ की आँखों में अखरता है उसका रंग-ढंग
पिता का संदेह बढ़ता जाता है दिनों-दिन और
भाई की जासूस निगाहें करती रहती हैं पीछा
गाँव-घर के लोग देने लगते हैं नसीहतें
समझाने लगते हैं ऊँच-नीच अच्छे-बुरे के भेद
मगर प्रेम करनेवाली लड़की
दुनिया को अपने अनुभव से
जानना-समझना चाहती है
और एक माँ की तरह
उसे और सुंदर बनाना चाहती है।
मैं कृतज्ञ हूँ इस बिस्तर का
जिसने रात भर मुझे सुख प्रदान किया
कृतज्ञ हूँ उन मच्छरों का भी
जिन्होंने एक लंबी नींद में गर्क होने से बचाया
मेरे पास इस काग़ज़ के लिए भी कृतज्ञता है
जिसने मेरे शब्दों को अभिव्यक्त होने के लिए
ऐसे वक़्त में जगह दी, जब प्रेम और करुणा के लिए
निरंतर कम होती जा रही है जगह
मगर इस रात को शुक्रिया कैसे करूँ मैं
जिसने मुझे एक सपने से दूसरे सपने
तक की सैर कराई
दोस्तों का शुक्रिया करना
उनके आंतरिक लगाव और भावनाओं को ठोस पहुँचाना है
इस तरह बहुत कुछ रह जाता है
जिसके प्रति कृतज्ञता प्रकट नहीं कर पाते हैं हम
किसी के किए-धरे का बदला चुकाने की सोचना
तो सबसे बड़ी कृतघ्नता है!!
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