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प्रेम का विषाद / हरिवंश राय बच्चन / विलियम बटलर येट्स

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सन्ध्या बेला में गौरैयों के कलरव ने,
पूर्ण चन्द्र ने, पूरी आकाशी गंगा ने,
सामंजस्य-स्वरों में वृक्षों के मर-मर ने
        मानव की प्रतिमा विलुप्त कर दी थी,
                           मानव की पुकार भी ।

उठी एक बाला, जिसके थे अधर गुलाबी और मातमी —
एक बूँद आँसू में संसृति की विराटता सिमटी मानो —
भाग्य महानाविक का ले,
जो बेड़ा लेकर क्षुब्ध समुद्रों की यात्रा को निकल पड़ा हो
स्वाभिमान उस परम वीर का ले,
           जो अपने अभय साथियों के संग संगर में जूझा हो ।

उठी, और उसके उठते ही कलरव सन्ध्या,
शून्य गगन में चढ़ते चन्दा,
वृक्षों के अवसाद-भरे हर-हर, मर-मर ने
           मानव की प्रतिमा प्रस्थापित कर दी,
                            मानव की पुकार भी !

मूल अँग्रेज़ी से हरिवंश राय बच्चन द्वारा अनूदित

लीजिए अब पढ़िए यही कविता मूल अँग्रेज़ी में
                William Butler Yeats
                The Sorrow of Love

The brawling of a sparrow in the eaves,
The brilliant moon and all the milky sky,
And all that famous harmony of leaves,
Had blotted out man's image and his cry.

A girl arose that had red mournful lips
And seemed the greatness of the world in tears,
Doomed like Odysseus and the labouring ships
And proud as Priam murdered with his peers;

Arose, and on the instant clamorous eaves,
A climbing moon upon an empty sky,
And all that lamentation of the leaves,
Could but compose man's image and his cry.