प्रेम की गोपनीयता / सुरेन्द्र रघुवंशी
मैंने उस लड़की से प्रेम किया
या उस लड़की ने मुझसे प्रेम किया
यह बात इतनी सम्वेदनशील थी
कि इसकी गोपनीयता की रक्षा के लिए
हमने एक-दूसरे को विश्वास में लिया
सार्वजनिक रूप से
लड़की के सौन्दर्य की तारीफ़ वर्जित थी
लड़की दबे पाँव निकलती घर से
और न जाहिर करती
होठों पर आ गए शब्दों को भी
लड़की ने सुन रखे थे
दीवारों में भी कान होने के मुहावरे
गुप्त रखे गए प्रेम के प्रसंग
और मिलने के स्थान
परिजनों के हाथों की पहुॅंच के बाहर
जतन से रखे गए प्रेम-पत्र
हम अक्सर निर्जन में मिलते
वहाँ झाड़ियों की ओट में
सूखे झुरमुट चरमराते
वहाँ काली चट्टान पर
पक्षियों की सफ़ेद सूखी बीट मिलती
जबकि चट्टानें ख़ुद पर
सुन्दर इबारत लिखे जाने की प्रतीक्षा में
स्थिर रहीं सदियों से
सबसे ज़्यादा खुशियों में सराबोर क्षण
सामाजिक वर्जना की क़ैद में रहे