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प्रेम की ज्योति फिर से जलाओ पिया / रिंकी सिंह 'साहिबा'

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प्रेम की ज्योति फिर से जलाओ पिया,
मेरे अधरों से तुम मुस्कुराओ पिया,
बिन तुम्हारे गुज़रती नहीं ज़िंदगी,
मुझको आवाज़ देकर बुलाओ पिया।

मैं हूँ आकाश तुम मेरी मंदाकिनी,
मैं घटा प्रीत की तुम हो सौदामिनी,
गीत के बोल मैं हूँ तो तुम रागिनी,
फिर से बातें वही तुम सुनाओ पिया,
मुझको आवाज़ देकर बुलाओ पिया।

जब मिले थे पिया ये हमारे नयन,
सुध सकल सृष्टि की तब बिसारे नयन,
एक दूजे को जी भर निहारे नयन,
दृष्टि से दृष्टि फिर से मिलाओ पिया,
मुझको आवाज़ देकर बुलाओ पिया।

साथ तुम जो चलो तो ये जीवन चले,
फूल मधुवन में संभावना के खिले,
प्रेम आकर स्वयं प्रेम पथ पर मिले,
प्रीत की रीत फिर से निभाओ पिया,
मुझको आवाज़ देकर बुलाओ पिया।

तुम मेरी भावनाओं का सिंगार हो,
प्यास मैं हूँ मेरी तुम ही रसधार हो,
तुम हो जीवन मेरा तुम मेरा प्यार हो,
तुम सताओ, रुलाओ , हँसाओ पिया,
मुझको आवाज़ देकर बुलाओ पिया।