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प्रेम की दुश्मन जाति / अरविन्द भारती
Kavita Kosh से
यकबयक
खिले फूल
मुरझाने लगे
पत्तियाँ
शाखाओं से टूटकर
बिखरने लगी
खुशियों के
लगते थे जहाँ
मेले उदासियों ने
डाल लिए
डेरे
डस लिया था
जिसने प्रेम को
वो
नाग था
जाति का।