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प्रेम की परिभाषाएँ / प्रिया जौहरी

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तुम्हारी और मेरी प्रेम की परिभाषाएँ
कितनी मिलती जुलती थी
एक दूसरे से
पर इस मेल जोल में
बहुत-सा है जो नहीं मिलता
मेरा दिन तुम्हारी रात है
मेरी शाम तुम्हारी भोर है
मेरा तुम्हारा मिलना बाते करना
सब सुकून-सा है
जानती हूँ
वक्त नहीं है तुम्हारे पास
पर शायद मेरे पास भी नहीं है
प्रेम एक होने के बावजूद
वक्त की परिभाषायें
कितनी अलग अलग है
हमारी एक दूसरे से ।